निदा रहमान, स्वतंत्र पत्रकार
मध्यप्रदेश के छोटे से शहर से भोपाल और वहां से दिल्ली तक का मेरा सफ़र बिल्कुल आसान नहीं था. करीब 20 साल पहले मेरे माता-पिता ने मुझे अपने पैरों पर खड़े होने का अवसर दिया। इसके लिए उन्हें करीबी रिश्तेदारों से बातें सुननी पड़ीं. मेरे अब्बा से एक नज़दीकी रिश्तेदार ने कहा कि बेटी कहीं हाथ से न निकल जाए। उनका मतलब यह था कि लड़की कहीं भाग न जाए. धर्म के ठेकेदार लड़कियों को पढ़ाई से रोकने के लिए आज भी पूरा ज़ोर लगा देते हैं. धर्म के नाम पर जितनी बेड़ियां लड़कियों के पैरों में डाली जाती हैं , उतनी ही आज़ादी लड़कों के हिस्से आती है. सारा दीन - धर्म, लड़कियों और औरतों को काबू करने के लिए है चाहे वह अल्पसंख्यक हो या बहुसंख्यक।
सोशल मीडिया पर इन दिनों ऐसे अनगिनत उदाहरण मिल जाएँगे, जिनमें लड़कियों के मुर्तद यानि विधर्मी ( जो दूसरे धर्म में चला गया हो ) होने को लेकर ख़ासी नाराज़गी और चिंता जताई जा रही है। या कहें कि माता-पिता और लड़कियों की परवरिश पर सवाल उठाए जा रहे हैं, उन्हें टारगेट किया जा रहा है, ट्रोल किया जा रहा है. इन दिनों कुछ मुस्लिम सोशल मीडिया के मंचों पर पर एक लिस्ट चला रहे हैं , जिनमें उन लड़कियों के नाम हैं जिन्होंने हिंदू या दूसरे धर्म के लड़कों से शादी की है और अपना मज़हब बदल लिया . उनका दावा है कि हालिया सालों में 10 लाख से ज़्यादा मुस्लिम लड़कियों ने ग़ैर मुस्लिमों से शादी की है और धर्म बदला है.
दूसरी तरफ़ बहुसंख्यकों को भी कमोबेश ऐसी ही चिंता है। वे भी कथित लव जिहाद के ख़िलाफ़ लंबे वक्त से मुहिम चला रहे हैं। हिंदू लड़की किसी ग़ैर धर्म के लड़के से शादी न कर ले, उनका सारा ज़ोर इसी बात पर है। मान लेना चाहिए कि धर्म कोई भी हो, उसे सबसे ज़्यादा ख़तरा लड़कियों से ही है। अगर लड़कियां किसी दूसरे धर्म के लड़के से शादी करती हैं तो वो विधर्मी हो जाती हैं, उनसे धर्म ख़तरे में पड़ जाता है. विडंबना यह है कि लड़कों को इसके लिए दोषी नहीं माना जाता।समाज को चलाने वाले चाहते हैं कि लड़कियों को ऐसा करने से रोका जाए। इसके लिए ज़रूरी है कि उन्हें उच्च शिक्षा से रोका जाए,उन्हें नौकरी नही करने दी जाए और उन्हें अपने पैरों पर खड़ा नहीं होने दिया जाए.
जब एक मुस्लिम लड़की हिंदू लड़के से शादी करती है और एक हिंदू लड़की मुस्लिम लड़के से शादी करती है तो इसमें दोनों तरफ़ के धर्म संरक्षक अपने अपने धर्म के लड़कों को क्लीन चिट दे देते हैं। क्योंकि एक तरफ़ वाले का पूरा परिवार जन्नत में जाएगा, तो दूसरा वाला किसी लड़की की घर वापिसी कराएगा. दरअसल यह सारा खेल ताकत और लड़कियों को कब्ज़े में रखने का है. मुस्लिम लड़के हिंदू लड़की से शादी करते हैं तो वे मुस्लिम समाज की आंखों के तारे बन जाते हैं, वो मिसाल बनते हैं. उनकी परवरिश पर कोई सवाल नहीं उठाता है, उन्हें घर में रहने की नसीहत नहीं दी जाती है, उन्हें मुर्तद नहीं कहा जाता है क्योंकि वो तो किसी दूसरे धर्म की लड़की को अपने मज़हब में लाते हैं. यही मामला दूसरी तरफ़ भी है. हिंदू लड़का मुस्लिम लड़की से शादी करे तो धर्म के बंधन टूट जाते हैं,मीडिया से लेकर आम इंसान तक उसकी मोहब्बत के कसीदे पढ़ता है क्योंकि यहां एक मुस्लिम या ग़ैर हिंदू लड़की घर वापिसी करती है.
लड़कियों की भलाई के नाम पर आंसू बहाने वालों को लड़कियों की चिंता नहीं है। इस बात का अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है। रोज़ाना सैंकड़ों लड़कियां , औरतें, बलात्कार, घरेलू हिंसा या दहेज हत्या का शिकार होती हैं लेकिन समाज तभी चिंता करता दिखता है , जब आरोपी दूसरे धर्म का हो। एक ही धर्म में शादी करने के बाद फिर लड़की का पति उसके साथ कैसा बरताव करता है इससे किसी को कोई लेना देना नहीं है. कुछ समय पहले गौतमबुद्ध नगर में एक नई नवेली दुल्हन को उसके पति, सास और ससुर ने गला घोंट कर मार दिया, क्योंकि दहेज में फॉर्च्यूनर और 10 लाख रुपए नहीं दिए गए थे. लेकिन यह ख़बर आई गई हो गई. किसी का ख़ून नहीं खौला , किसी का धर्म ख़तरे में नहीं पड़ा, सब चैन की बंसी बजा रहे हैं. रोज़ाना लड़कियों - औरतों की हत्याएं होती हैं लेकिन सोसायटी को कोई फिक्र नहीं होती।
यदि परिवार के लोग अंतर धार्मिक शादी को हंसी खुशी स्वीकार कर भी लेते हैं तो भी भारतीय समाज उसे स्वीकार नहीं करता। वह लड़कियों की ज़िंदगी आसान बनाने या उनकी बेहतरी के बारे में नहीं सोचता। हर प्रेम विवाह धार्मिक षड्यंत्र नहीं होता। अगर उसे नकारात्मक नज़रिए से देखेंगे तो मेरा निवेदन है कि आप समाज से मोहब्बत या प्रेम के अस्तित्व को मिटाना चाहते हैं और इसकी इजाज़त कोई भी सभ्य समाज नहीं देता।