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Added on : 2023-05-25 12:55:07

राकेश दुबे 

भारत जैसे विकासशील देश में,विधानसभा और लोकसभा का चुनाव लड़ने वाले दलों ने अपनी घोषणाओं की आदत नहीं बदली तो सबसे पहले उन राज्यों के दीवालिया होने के आसार है जो क़र्ज़े में डूबे है और चुनावी वादे जल्द से जल्द पूरा करने को उतारू हैं। इन राज्यों में मध्यप्रदेश भी है। फ़िलहाल बात कर्नाटक की।कर्नाटक में पिछली भाजपा सरकार के समय का 5 लाख 60 हजार करोड़ का ऋण है, लेकिन सत्ता संभालते ही अपनी पहली मंत्रिमंडल की बैठक में सिद्धारमैया सरकार ने पांच गारंटी को लागू करने का फैसला लिया है जिस पर 50000 करोड़ की भारी-भरकम राशि खर्च होने का अनुमान है। इसके साथ ही यदि सरकार ने सभी चुनावी वादे पूरे करने का फैसला लिया तो यह खर्च 2 लाख 42 हजार करोड़ को भी पार कर जाएगा।

सबसे पुराने दल कांग्रेस ने चुनावी घोषणापत्र को लागू करने की दिशा में मंत्रिमंडल ने अधिसूचना जारी करने का निर्णय लिया है कि पांचों गारंटी को लागू किया जाएगा। इसके अंतर्गत हर परिवार को 200 यूनिट मुफ्त बिजली, परिवार की मुखिया महिला को हर माह 2000 रुपये, गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले हर परिवार के सदस्यों को 10 किलो मुफ्त राशन, बेरोजगार स्नातक को दो वर्ष तक हर माह 3000 और डिप्लोमा धारक को 1500 रुपये और महिलाओं को राज्य में मुफ्त बस सेवाएं उपलब्ध करवाने के निर्णय हैं। इसके अलावा पार्टी के घोषणापत्र में बंद पड़ी कृष्णा, अपर कृष्णा और अपर भाद्रपद परियोजनाओं को भी पूरा करने की बात कही गई है जिस पर 2 लाख करोड़ की लागत का अनुमान है। इसके साथ ही कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाली पर 2000 करोड़ वार्षिक खर्च आयेगा। इसके अतिरिक्त सरकार ग्रामीणों के साथ किए गये वादों को भी पूरा करेगी। अपनी चुनावी रैलियों में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी ने वादा किया था कि सत्ता में आने पर उनकी सरकार मंत्रिमंडल की पहली बैठक में इन गारंटी पर मोहर लगाएगी और यह वादा पूरा भी किया है। ऐसे ही मंसूबे और राजनीतिक दल अन्य राज्यों में बांध रहे हैं ।

कांग्रेस सरकार को इन पांच मुख्य चुनावी गारंटी को अमली जामा पहनाने पर कर्नाटक में ही हर वर्ष 40 हजार करोड़ खर्च करने होंगे जो राज्य बजट का 15 प्रतिशत है। इसके अलावा राहुल गांधी ने हर मछुआरे को 10 लाख का मुफ्त बीमा और इस समुदाय की हर महिला को 1 लाख रुपये का ब्याज मुक्त ऋण और 25 रुपये अनुदान पर रोजाना 200 लीटर डीजल देने का भी वादा किया है।

आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस समय वर्ष 2003 से कर्नाटक के 3 लाख कर्मचारी नयी पेंशन स्कीम के अंतर्गत आते हैं, जिसे केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने लागू किया था। अब यदि पुरानी पेंशन स्कीम बहाल की जाती है तो प्रदेश पर हर साल 2000 करोड़ का वित्तीय बोझ पड़ेगा और आने वाले वर्षों में यह और बढ़ेगा। हाल ही में हिमाचल सरकार द्वारा भी पुरानी पेंशन बहाली का निर्णय लागू किया गया, लेकिन केंद्र सरकार ने एनपीएस में जमा8000 करोड़ को वापस करने से मना करके प्रदेश सरकार को मुश्किल में डाल दिया है। यह वह राशि है जो हिमाचल के कर्मचारियों और सरकार के योगदान से पिछले 18 वर्षों में एनपीएस में जमा की गई थी। इसी तरह केंद्र ने राजस्थान सरकार द्वारा एनपीएस में जमा 36000 करोड़ लौटाने से भी इंकार कर दिया है। राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने भी पुरानी पेंशन स्कीम लागू कर दी है और गहलोत सरकार को पूरा विश्वास है कि नवम्बर में होने वाले विधानसभा चुनावों में इसका लाभ कांग्रेस को मिलेगा। समझा जाता है कि इसी तर्ज़ पर केंद्र सरकार कर्नाटक के एनपीएस में जमा 19000 करोड़ भी लौटाने से इंकार कर देगी। इसलिए अब कर्नाटक सरकार को अन्य संसाधनों से धन का प्रावधान करना होगा।

रिजर्व बैंक ने भी राज्य सरकारों को आगाह किया है कि वे ओपीएस लागू न करें क्योंकि आने वाले समय में इस कारण से देनदारियां इतनी बढ़ जाएंगी कि भविष्य में अर्थव्यवस्था खतरे में पड़ सकती है। इसके साथ ही 10 लाख नौकरियों के साथ 2 लाख 50 हजार रिक्त पदों को भरना भी राज्य के वित्तीय संसाधनों पर असर डालेगा। वैसे आर्थिक विशेषज्ञों को विश्वास है कि कर्नाटक घोषित वित्तीय गारंटियों का भार उठाने की क्षमता रखता है। लेकिन सारे राज्य नहीं।

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