डॉ. चन्दर सोनाने
मध्यप्रदेश के सीधी में भाजपा के एक युवा नेता प्रवेश शुक्ला ने एक आदिवासी युवक पर पेशाब कर घृणित और अमानवीय अपराध किया है। यह प्रवेश शुक्ला वहीं भाजपा नेता है, जिसने कुछ माह पहले स्थानीय पत्रकारों को नंगा कर थाने में पिटवाया था। इस घृणित और अमानवीय अपराध की जितनी भी निंदा की जाए कम है। यह घटना एक सामान्य घटना नहीं, बल्कि मानवता को कलंकित करने वाली घटना है। क्या कारण है कि व्यक्ति सत्ता के मद में चूर होकर जहाँ ऐसे घृणित कार्य कर बैठता है , वहीं आज 21 वीं सदी में भी कुछ लोग ऐसे हैं, जो दलित लोगों के साथ अमानवीय और घृणित व्यवहार करते हैं। यह एक सामाजिक समस्या भी है। इस पर गहन गंभीर चिंतन, विमर्श और दीर्घकालीन योजना बनाकर कार्य करने की आवश्यकता है।
सीधी कांड ने मध्यप्रदेश की सीमा को लांघकर राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मीडिया में जगह बना ली है। सोशल मीडिया में सबसे पहले सीधी कांड उजागर होने के बाद में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिन्ट मीडिया को भी इसे जगह देने के लिए बाध्य होना पड़ा। प्रवेश शुक्ला को गिरफ्तार कर लिया गया है और जेल में भेज दिया गया है। उसका अतिक्रमित मकान भी तोड़ दिया गया है। इस घटना में शीघ्र कार्रवाई करने के लिए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान बधाई के पात्र है कि उन्होंने अपराधी व्यक्ति को तुरंत गिरफ्तार कराकर न सिर्फ उसके विरूद्ध आपराधिक प्रकरण दर्ज कराया, बल्कि जेल भी भेज दिया। मुख्यमंत्री ने पीड़ित को अपने घर बुलाकर घटना के प्रति दुख व्यक्त कर अपनी गहरी संवेदना भी व्यक्त की। यह मुख्यमंत्री की संवेदनशीलता ही कही जा सकती है।
किन्तु ऐसी घटनाएँ होती ही क्यों है ? सत्ता के मद में व्यक्ति इतना अधिक निडर हो जाता है कि वह कभी भी किसी के भी विरूद्ध कुछ भी कर गुजरने से पीछे नहीं हटता है। यह व्यक्ति की मानसिक बीमारी भी कही जा सकती है। मुख्यमंत्री सही मायने में इस घटना से दुखी है तो उन्हें चाहिए कि वे अपने सभी विधायकां और भारतीय जनता पार्टी के पदाधिकारियों सहित कार्यकर्ताओं को यह सख्त संदेश दें कि जो कोई भी दलित, गरीब आदिवासी के विरूद्ध नियमों से खिलवाड़ करेगा, वह बख्शा नहीं जायेगा। अन्यथा यह माना जायेगा कि राजनीतिक नुकसान की भरपाई के लिए ही मुख्यमंत्री ने उक्त नोटंकी की।
सीधी के एक आदिवासी गरीब युवक के साथ ये घटना सोशल मीडिया के कारण ही उजागर हो पाई है। एक बार फिर सोशल मीडिया ने अपनी ताकत उजागर कर दी है। आज एक आम आदमी भी पत्रकार बन गया है। समाज में और अपने आसपास हो रही गलत बातों को वह तुरन्त वीडिया बनाकर वायरल कर समाज के सामने ला देता है, ताकि आरोपी को दंड मिल सके और पीड़ित का न्याय।
आजकल गरीब दलित परिवारों के साथ मध्यप्रदेश और देश के विभिन्न हिस्सों में अमानवीय घटना होना आम बात हो गई है। यहाँ कुछ उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं जो हाल ही की घटनाओं के हैं। पिछले दिनों मध्यप्रदेश के देवास जिले के सोनकच्छ के गाँव बीसाखेड़ी में रविदास समाज के लोगों को राजपूत समाज के लोगों ने माताजी का पूजन करने से मना कर दिया। पीड़ित लोगों ने पुलिस और सीएम हेल्पलाइन में शिकायत की। उसके बाद पुलिस की मौजूदगी में पूजन हुआ। इसके बाद दोनों पक्षों में विवाद बहुत बढ़ गया और मामला थाने तक पहुँचा। ऊँची जाति के लोगों ने दलित जाति के लोगों को जातिसूचक शब्द कहे और पूजा की थाली फेंक दी। यही नहीं उनके साथ मारपीट भी की। पीड़ित लोगों ने आरोपियों के विरूद्ध प्रकरण दर्ज कराने की माँग की तो उनकी सुनवाई नहीं हुई। मजबूरी में महिलाओं को थाने के सामने बैठना पड़ा। इसके बाद पुलिस जागी और आरोपियों के विरूद्ध एफआईआर दर्ज की।
मध्यप्रदेश की ही एक और घटना है। इसमें छतरपुर जिले के जुझारनगर क्षेत्र के महाराजपुर गाँव में एक दलित को एक ठाकुर के घर के सामने से बाईक पर बैठकर निकलना इतनी बड़ी गलती हो गई कि पीड़ित के पैर ही तोड़ दिए। घटना इस प्रकार है कि जून महीने के अंतिम सप्ताह में शाम के समय लखन प्रजापति अपने घर से पत्नी अनिता और एक साल के बेटे के साथ शादी में जा रहा था। रास्ते में ही उसे गाँव का दबंग संजय ठाकुर मिल गया। उसके हाथ में लट्ठ था। लखन को बाईक पर देखकर संजय ने उसे रोक लिया और गंदी-गंदी गाली दी। लखन ने संजय को गाली देने से मना किया तो वह आग बबूला हो गया और लाठी से लखन का सिर फोड़ दिया। इस हमले से पीड़ित उसकी पत्नी और बेटे जमीन पर जा गिरे। इसके बाद भी संजय रूका नहीं और लाठी से लखन को पीटना जारी रखा। इस मारपीट में लखन लहूलुहान हो गया। बेटे को देखकर उसकी पत्नी अनिता उसे बचाने आई तो बच्चे को दूर धकेलकर संजय ने अनिता के साथ भी मारपीट की। यह घटना बुंदेलखंड की एक बानगी है। बुदेलखंड में इस प्रकार की घटना आए दिन होते रहती है। यहाँ के ठाकुर दलितों को अपना गुलाम समझते हैं।
मध्यप्रदेश के आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा ऊँची जाति के लोगों और दलित लोगों के बीच प्रेम और भाईचारा बढ़ाने तथा उसे कायम रखने के उद्देश्य से सामूहिक भोज का आयोजन गाँव में ही किया जाता था। इस भोज में गाँव के सभी ऊँची जाति और दलित लोगों को साथ में बैठाकर भोजन कराया जाता था। इस आयोजन में प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी भी उत्साह से भाग लेते थे। किन्तु दुखद है कि बरसों पूर्व इस प्रकार के आयोजनों को राज्य सरकार ने बेफिजूल खर्चा बताकर बंद कर दिया। किन्तु जिन गाँव और क्षेत्रों में जातिगत छूआछूत और भेदभाव की भावना आज भी विद्यमान है, उन गाँवों में इस प्रकार के आयोजन सार्थक सिद्ध हो सकते हैं। इसे फिर से शुरू किए जाने की आवश्यकता है।
घटनाएँ और भी है। किन्तु, उक्त तीन घटनाएँ ही उदाहरण के लिए पर्याप्त है। आज 21वीं सदी में भी लोग 18 वीं सदी की विचारधारा के साथ जी रहे हैं ! अब यहाँ सवाल यह उठता है कि आज भी पिछड़ी और दकियानुसी मानसिकता में लोग कैसे जी रहे हैं ? ऐसे लोगों की मानसिक चिकित्सा कराने की आवश्यकता है। यह कानूनी अपराध तो है ही, साथ ही साथ यह सामाजिक अपराध भी है। ऐसी घटनाओं को सामान्य लेने की आवश्यकता नहीं है। राज्यों और केन्द्र सरकार को चाहिए कि वे इन सामाजिक समस्याओं पर गहन चिंतन-मनन करें और इस गंभीर समस्या के निराकरण के लिए ठोस उपाय निकालें।