डॉ. सुधीर सक्सेना
भारत रत्न डॉ. सीवी रामन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से उन्नीस वर्ष छोटे थे और भारत के स्वप्नदृष्टा प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू से एक वर्ष बड़े। उनका जन्म 7 नवंबर, सन् 1888 को कावेरी तट पर तिरूचिलापल्ली के समीप छोटे-से गांव तिरूवानाइकावल स्थित नाना के घर में हुआ था। दादा सप्तर्षिशास्त्री संस्कृत के उद्भट विद्वान थे। पिता आर. चंद्रशेखर स्थानीय विद्यालय में बरसों अध्यापन के बाद विशाखापट्टनम में गणित और भौतिकी के व्याख्याता थे। सीवी रामन कुशाग्रबुद्धि थे और 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय की परीक्षाएं उत्तीर्ण कर ली थीं। तुर्रा यह कि शुरू से लेकर अंत तकर परीक्षाओं में अव्वल। साथ ही चार भाषाओं और विविध विषयों में दक्षता। किताबें उनकी सहचर थीं। एडविन अर्नोल्ड की ‘द लाइट आफ एशिया’, यूक्लिड के ‘द एलीमेंट अफ यूक्लीड’ और हरमन वॉन हेल्महोल्टज की ‘द सेंसेशंस आफ टोन्स’ जैसी कृतियों में उनके व्यक्तित्व, रुचियों और मिशन को आमूलचूल बदल दिया। अंतरराष्ट्रीय जर्नलों में उनके शोधपत्र कॉलेज के दिनों से ही छपने लगे थे। 475 शोधपत्रों और विविधता से भरे उनके पांच प्रबंधों में उनका सारगर्भित काम हमारे सामने है। वे विज्ञान को पूर्णत: समर्पित शख्सियत थे। वे रॉयल सोसायटी आॅफ लंदन के फेलो रहे। सन् 1929 में उन्हें ब्रिटिश हुकूमत ने ‘नाइटहुड’ से नवाजा और सन् 1930 में उन्हें नोबेल मिला। उनके सीने पर तमगों की कमी नहीं थी। विज्ञान की दुनिया में वह भारत के प्रतिनिधि और गौरव थे। उन्होंने इंडियन एकेडेमी आफ साइंसेज, बैंगलोर (1934) और रामन रिसर्च इंस्टूट्यूट (1948) की स्थापना की। नेशनल एकेडेमी आफ साइंसेज की स्थापना में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। बंगलोर से एकेडेमी की पत्रिका ‘करंट साइंस’ की भी शुरूआत की। रामन स्वयं में संस्था थे, जीतेजी किंवदंती। सन् 1954 में उन्हें ‘भारतरत्न’ कृतज्ञ राष्ट्र की प्रणति था।
यही डॉ. रामन गांधी से गहरे अनुप्रेरित थे। राष्ट्र में चेतना और गौरव जगाने का व्रत उन्हें प्रभावित करता था। गांधी की भांति उनकी भी अभिलाषा थी कि भारत भूमण्डल में उचित स्थान प्राप्त करें। उनकी यह भी धारणा थी कि भारत को अनुगामी नहीं, नेतृत्वकर्ता होना चाहिए। भारत की समस्याओं का एक ही हल है विज्ञान और सिर्फ विज्ञान। भारतीय मस्तिष्क की विशेषता किसी भी ट्यूटोनिक, नार्डिक या एंग्लो-सेक्सन मस्तिष्क के ही समान है। उन्होंने नोबेल पुरस्कार ग्रहण करने के ऐतिहासिक क्षणों का जो वर्र्णन किया है, वह गुलाम भारत के किसी भी देशभक्त के भावों को व्यक्त करता है। वह लिखते हैं : ‘‘जब मैं भीड़भरे हॉल में बैठा था, तो मैंने देखा कि वहां चारों तरफ पश्चिमी चेहरे हैं और अपनी पगड़ी व बंद कोट में मैं अकेला भारतीय हूं। तब मुझे यह एहसास हुआ कि मैं सही मायने में अपने लोगों व अपने देश का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं। जब मैंने राजा गुस्ताव से पुरस्कार ग्रहण किया तो मैं काफी विनम्र हो गया। वह महान भावावेश का क्षण था, लेकिन मैं खुद पर नियंत्रण रख सका। तभी मैंने पीछे मुड़कर देखा कि मैं ब्रिटिश यूनियन जैक के नीचे बैठा हूं। उस समय मैंने यह महसूस किया कि मेरे गरीब देश भारत के पास स्वयं का झंडा भी नहीं है। इस बात से मैं संभल नहीं पाया और फूट-फूट कर रो पड़ा।’’
उक्त प्रसंग सीवी की देशभक्ति का परिचायक है। व प्रखर देशभक्त, विचारक और दूरदृष्टा थे। उनकी निर्भीकता उनके आचरण में झलकती थी। गांधी के कथन ‘सत्य ही ईश्वर है’ में उनकी गहरी निष्ठा थी। गांधी की प्रतिभा, देशभक्ति और दूरदर्शिता पर वे मुग्ध थे। और उन्हें उद्धारक के तौर देखते थे। उनका कहना था-‘‘सभी पाठ्यपुस्तकों के मुखपृष्ठ पर गांधीजी का चित्र अनिवार्य रूप से होना चाहिए और साबरमती आश्रम और बिड़ला भवन में गांधी जी द्वारा दिये गये उपदेशों में निहित सीखों का जिक्र किया जाना चाहिए। विश्व के महानतम व्यक्ति और भारत के राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि का यह श्रेष्ठ और प्रभावशाली तरीका होगा। उनकी याद में स्मारकों और मूर्तियों को बनाने की बजाय यह तरीका अधिक बेहतर होगा। उनकी शिक्षा पूर्णरूपेण विखंडनहीन और अविजित मानव-आत्मा के सर्वोच्च नैतिक गुण को प्रभावित करती है।’’
सीवी रामन को नोबेल सम्मान मिला, गांधी को नहीं। वस्तुत: गांधी कभी के नोबेल से ऊपर उठ चुके थे। वे नोबेलों के नोबेल सम्मान के हकदार थे। अल्बर्ट आइंसटीन, चार्ली चैप्लिन, रोम्या रोलां, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, नेल्सन मंडेला, मार्टिन लूथर समेत कोटि-कोटि पृथ्वीवासी उन पर यूं ही निसार न थे। उन्होंने गांधी व्याख्यानमाला का सूत्रपात किया। सीवी रामन भी उनके मुरीद थे। इसका प्रमाण यह है कि उन्होंने रामन रिसर्च इंस्टूट्यूट में गांधी मेमोरियल व्याख्यान का सूत्रपात किया और मृत्युपर्यंत वहां व्याख्यान देने से नहीं चुके। उनकी पत्नी लोकसुंदरी का कस्तूरबा गांधी से घनिष्ठ परिचय था। रामन अपने व्याख्यानों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया करते थे। वे पुरूषों-महिलाओं और बच्चों की बौद्धिक व शारीरिक ताकत को राष्ट्र की सच्ची संपदा मानते थे। वे इतने यकीन करते थे कि इस महादेश की सच्ची मुक्ति ज्ञान और विज्ञान में निहित है।
विज्ञान की दुनिया में सीवी रामन भारत का गौरव हैं, लेकिन गौर करें कि अपने गौरव-पुरुष की नसीहतों पर हम कितना अमल कर रहे हैं।