राजेश बादल
भोपाल की गैस त्रासदी विश्व इतिहास का एक ऐसा क्रूर अपराध है,जिसके मुजरिमों को कभी माफ़ नहीं जा सकता ।लेकिन भारत के लोग ही इसे भूल से गए हैं । कोई और देश होता तो पता नहीं क्या होता। लेकिन भारतीय तो सदियों तक ग़ुलामी की ज़ंजीरों में जकड़े रहे हैं ,इसलिए अब उनके भीतर प्रतिरोध करने की बात ज़ेहन में ही नहीं आती। कठघरे में साँसें किताब की शक्ल में एक ऐसा दस्तावेज़ हमारे सामने है ,जो आने वाली पीढ़ियों को झकझोरता रहेगा। प्रतिरोध की संस्कृति एक बार फिर पनपनी चाहिए।
यह बात रविवार को इकतारा सभागार में इस किताब के लोकार्पण में सामने आई। पुस्तक के लेखक गैस त्रासदी के चलते फिरते सुबूत विभूति झा हैं।वे वकील और स्वयंसेवी हैं तथा ज़िला न्यायालय से लेकर सुप्रीमकोर्ट तक पीड़ितों के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है।व्यवस्था की असंवेदनशीलता, कार्यपालिका की घनघोर लापरवाही,न्यायपालिका के अन्याय पालिका में बदलने का हाल और पीड़ितों की दुर्दशा ,सब कुछ इस किताब में है। अपनी बात रखते हुए वे कई बार भाव विह्वल हो गए । उन्होंने पुराने मित्रों आलोक प्रताप सिंह, अब्दुल जब्बार और राजकुमार केसवानी को भी भावुक अंदाज़ में याद किया ।मुझे उन्होंने इस किताब के संपादन की ज़िम्मेदारी सौंपी थी । मेरे लिए इस पुस्तक का संपादन एक चुनौती से कम नहीं था ।मैने इस किताब को हिंदी भाषा में लिखी गई श्रेष्ठ त्रासदी कथा बताया। उनकी बेटी सुश्री वन्या झा भी संपादन में मेरी सहयोगी थीं । मुल्क के वरिष्ठतम समालोचक श्री विजय बहादुर सिंह ने अपने शानदार व्याख्यान में इस किताब का महत्व प्रतिपादित किया ।जाने माने कवि और बाल संवेदनाओं को दिल की गहराइयों तक उतारने वाले श्री राजेश जोशी को सुनना सदैव एक दिलचस्प अनुभव होता है ।उनकी कविता के साथ ही विभूति झा ने किताब का समापन किया है।
देश के जाने माने लेखक और पत्रकार भाई पंकज चतुर्वेदी ने इस पुस्तक के प्रकाशन की चुनौती स्वीकार की।चुनौती इसलिए कि पुस्तक में व्यक्त पीड़ितों का आक्रोश न्यायपालिका पर बम फोड़ने जैसा है और मुल्क के अनेक प्रकाशक इसका साहस नहीं जुटा रहे थे।पंकज तीस बरस तक नेशनल बुक ट्रस्ट के संपादक रहे हैं और उन्होंने लगभग 30 बरस में हजारों पुस्तकों का संपादन और प्रकाशन का जिम्मा उठाया है ।वे अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेले के वर्षों तक सफल आयोजक रहे हैं ।उनकी धारदार लेखनी और विचारों के हम सब कायल रहे हैं । संचालन की ज़िम्मेदारी भी उन्होंने ही संभाली। आभार प्रदर्शन सुश्री वन्या झा ने किया । दशकों पुराने दोस्त डॉक्टर सुधीर सक्सेना की उपस्थिति ने गरिमा बढ़ाई।
इस किताब को अपने चित्रों से प्रामाणिक बनाने वाले भाई आर सी साहू ने इसमें अनमोल योगदान दिया।हमने उनका अभिनंदन किया और साथ में सदी के सुबूत की तरह हमारे बीच मौजूद बानवे साल के जवान छायाकार जगदीश कौशल ने अपनी विशिष्ट तकनीक से इन चित्रों को संस्कारित किया । वे अस्सी साल से छायाकार हैं ।उनका भी हमने अभिनंदन किया ।कार्यक्रम में अरसे बाद इतनी बड़ी संख्या में बौद्धिक समाज उपस्थित हुआ।इनमें डॉक्टर,वकील, स्वयंसेवी,पत्रकार, लेखक,रंगकर्मी तथा समाज सेवी आए। पुस्तक एमेजॉन,फ्लिपकार्ट और प्रकाशक पी पी पब्लिकेशन की वेबसाइट पर उपलब्ध है ।