कुपोषण का भयावह रूप 3:बीस साल कुपोषण से बिस्तर पर, इलाज नहीं मिला ,जिंदगी से हारी जंग
शुभम बघेल
शहडोल . " सोचा नहीं था कि जन्म लेते ही इतने कष्ट सहने पड़ेंगे। पहले एनीमिया फिर कुपोषण के कुचक्र ने मेरा जीवन ही छीन लिया। मालूम नहीं था कि गांवों में खराब स्वास्थ्य व्यवस्था और ग़रीबी का खामियाजा मुझे जन्म से ही भुगतना पड़ेगा। मुझे जीने से पहले ही मौत मिल जाएगी। दो दशक तक इलाज को तरसता रहा।बीस साल तक बिस्तर पर रहा ,लेकिन किसी ने सुध नहीं ली।न पंचायत ने ,न आंगनबाड़ी ने ,न प्रशासन ने और न सरकार ने। सुनता था कि विकलांगों और कुपोषित बच्चों के लिए बहुत सहायता मिलती है लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ। मैंने खुद से चलना भी सीख लिया था। पहले तुम्हारा हाथ पकड़कऱ फिर लकड़ी पकड़कऱ नई राह देख रहा था। मौत से लडऩे की कोशिश भी कर रहा हूं,लेकिन अब कोई ठिकाना नहीं। मैं जीने की उम्मीद छोड़ रहा हूँ "।
कुपोषण के बाद गंभीर बीमारी से लड़ते-लड़ते जिंदगी से जंग हारने वाला 22 वर्षीय उदय कुछ ऐसी ही बातें अपने पिता से किया करता था। पिता उसे सहारा देने की कोशिश करते।वे सब जगह चक्कर काट चुके थे। पचड़ी गांव से सटे खौहाई गांव का यह नौजवान बचपन से ही गंभीर बीमारी से जूझ रहा था। परिजनों के अनुसार, पहले उदय कुपोषित और एनीमिक था। उसे इलाज नहीं मिला, गांव से अस्पताल और आंगनबाड़ी दूर थे। स्थिति यह हो गई कि उदय को विकलांगता ने घेर लिया। वह 20 साल बिस्तर पर रहा। जब सरकारी मदद और इलाज नहीं मिला तो परिजनो ने हाथ पकड़कऱ लकड़ी के सहारे चलना सिखाया। बीमारियां घेरती रही।उदय लड़ता रहा ।जूझता रहा । और एक दिन इस साल जनवरी में उसने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उदय बचपन से ही कमजोर था। बाद में कई बीमारियों की वजह से विकलांग हो गया था। चल फिर नहीं पाता था। बोल नहीं पाता था। परिवार के पास इलाज के लिए पर्याप्त पैसे नहीं थे। सरकारी कोई मदद भी उसे आख़िरी सांस तक नहीं मिली।
पचड़ी व खौहाई गांव के लोग बताते हैं कि अभी तक गांव में एक भी स्वास्थ्य जांच केन्द्र नहीं है। दो किलोमीटर दूर पर अस्पताल है। मझगवां अस्पताल में ताला पड़ा रहता है। डॉक्टर आते नहीं । इस स्थिति में इलाज के लिए शहडोल जाना पड़ता है। गांव में आंगनबाड़ी भी नहीं है। उसके लिए भी कई किलोमीटर पैदल जाना पड़ता है। ऐसे में बच्चों और उनके अभिभावकों को कुपोषण से बचने का रास्ता दिखाने वाला कोई नहीं रहता ।सवाल उठता है कि संवैधानिक मूल्यों का हनन और इस लापरवाही का जिम्मेदार कौन है ? सर्वोच्च न्यायालय ने अक्टूबर 2002 में स्पष्ट किया था कि राज्य सरकारें कुपोषण या भूख से मौत रोकने के लिए जिम्मेदार हैं। भूख से कोई मौत होने पर मुख्य सचिवों को जिम्मेदार ठहराया जाएगा। लेकिन बीस साल बाद भी किसी सरकार या प्रशासन ने उस पर अमल नहीं किया।इस बीच न जाने कितने उदय दम तोड़ गए।