नशा निरोधक दिवस: पीढ़ियां बरबाद कर देता है नशा
दयाराम नामदेव
विश्व नशा निरोधक दिवस के अवसर पर गांधी भवन में गोष्ठी आयोजित की गई। गोष्ठी का शुभारंभ सामूहिक सर्वधर्म प्रार्थना से हुआ।
गांधी भवन न्यास के सचिव दयाराम नामदेव ने कहा कि आज समाज के बीच में बुराई की सबसे बड़ी जड़ नशा है, यदि आज हम इससे नहीं बचे तो कल हमें अपनी मानव सभ्यता को बचाना कठिन होगा। उन्होंने महात्मा गांधी के सपनों के भारत में नशे की लत पर बात रखते हुए कहा कि बापू कहते थे कि यदि मैं डिक्टेटर बना तो मेरा पहला काम शराबबंदी करना होगा। इसके लिए यदि मुझे शिक्षा का बजट भी कम करना पड़ा तो मैं वह भी कम कर दूंगा। लेकिन इस बुराई को नहीं पालूंगा। नामदेव जी ने कहा कि आजादी के 75 साल बाद अनेक सरकारें आईं लेकिन कोई भी नशाबंदी की हिम्मत नहीं जुटा सका। बल्कि इन शासकों ने घर-घर नशा पहुंचाने का प्रयास किया। आज इन्होंने महिलाओं को भी इसका शिकार बना दिया, और समाज इसके पीछे इतना पागल हो गया कि वह अपना सर्वस्व नष्ट करने के लिए उद्धत है।
गांधी भवन के वरिष्ठ ट्रस्टी महेश सक्सेना ने कहा कि नशा प्रत्येक चीज का खराब होता है, इसके चक्कर में हमने अपनी सारी क्षमताएं खो दी है। एक नौजवान अपनी खूबसूरती खत्म कर अपना विकास अवरुद्ध कर लेता है, एक महिला मातृत्व क्षमता को खत्म कर लेती, पुरुष अपना परिवार खत्म कर लेता और यह सब मिलकर अपना समाज खत्म करते हैं।
मुस्कान संस्था से सुश्री सीमा ने कहा कि सरकारे नशा रोकने की जगह उसे फैलाने का काम ज्यादा कर रही। आज की राजनीति समाज के प्रति अपना कर्तव्य भूल गई। आज यह बहुत संवेदनशील मुद्दा है जिसके बारे में हमें व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर स्वयं काम करना होगा। पहले लोग नशा करने से बचते थे एक मर्यादा थी, लेकिन अब तो सरकार ने बैठकर पीने की व्यवस्था भी कर दी,जिससे सामाजिक मूल्य तार-तार हो गए।
रूबीना दीदी ने कहा कि हम मुस्कान संस्था के लोग जब समाज में जाते तो देखते हैं कि परिवार खोखले हो गए। सरकार नशा के पाउच में केवल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक लिखकर अपनी जिम्मेदारी से नहीं हट सकती, बल्कि समाज की उन्नति के लिए उस पाउच को बाजार से हटा देना ही मुख्य जिम्मेदारी होगी।
अंकित मिश्रा ने कहा कि निरोधात्मक मतलब हम समस्या आने के पहले समस्या के कारणों को खत्म कर दें। नशा करने की शुरुआत संगत से होती है, इसलिए नशा का निरोध अच्छी संगत व सुसंस्कृत परिवार से ही संभव है। उन्होंने कहा कि बाबा विनोबा जी के आश्रम में एक व्यक्ति बीड़ी पीता था। बाबा ने एक कमरे में उस व्यक्ति के लिए बीड़ी का बंडल व माचिस की व्यवस्था करवाई, वह बीड़ी पीने वाला जब बीड़ी पीने गया तो वह अकेले मे न तो बीड़ी पी सका, बल्कि उसके अंदर प्रेरणा जागी कि यह नशा मेरे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और उसने नशा करना छोड़ दिया, यह अहिंसक उपाय प्रेम की साधना से भरा है।
कार्यक्रम में गांधीभवन के कार्यकर्ता, मुस्कान संस्था के सदस्य नागरिक मौजूद थे।