बरसों पहले अमृता प्रीतम की एक पुरानी इंटरव्यू में उनकी आवाज़ में ये पंक्तियाँ सुनी थी- "कोई भी लड़की, हिंदू हो या मुस्लिम, अपने ठिकाने पहुँच गई तो समझना कि 'पूरो' (एक लड़की का नाम) की आत्मा ठिकाने पहुँच गई."
लेकिन इन पंक्तियाँ का मतलब क्या है तब पूरी तरह समझ में नहीं आया था. फिर एक दिन पिंजर नाम की एक किताब पढ़ने को मिली जो अमृता प्रीतम ने लिखी है और उसी पर पिंजर नाम से बनी हिंदी फ़िल्म देखी.
उपन्यास पिंजर 'पूरो' (उर्मिला मातोंडकर) नाम की एक हिंदू लड़की की कहानी है जो भारत के बंटवारे के वक़्त पंजाब में हुए धार्मिक तनाव और दंगों की चपेट में आ जाती है.
पूरो सगाई के बाद अपने होने वाले पति रामचंद के सपने देखती है. लेकिन उससे पहले ही उसे एक मुस्लिम युवक उठा ले जाता है और निकाह कर लेता है. माँ बनने के अपने एहसास को पूरो अपने तन-मन के साथ हुआ धोखा मानती है. इसी बीच दंगों में भड़की हिंसा के दौरान एक और लड़की अग़वा कर ली जाती है.
लेकिन पूरो अपनी जान जोखिम में डाल उस लड़की को एक और पूरो बनने से बचा लेती है और सही सलामत उस लड़की को उसके पति को सौंपती है जो उसका अपना सगा भाई था.
और तब उसके मन से ये अलफ़ाज़ निकलते हैं- "कोई भी लड़की, हिंदू हो या मुस्लिम, अपने ठिकाने पहुँच गई तो समझना कि पूरो की आत्मा ठिकाने पहुँच गई."
और एक नई समझ के साथ जब आप पूरो के ये शब्द सुनते हैं तो मन में एक सिहरन सी उठती है. जिस तरह उन्होंने औरत के मन और उसकी इच्छाओं, उसके भीतर छुपे खौफ़, उसके साथ हुई ज़्यादतियों और उसके सपनों को अलफ़ाज़ दिए हैं वो उस दौर के लिए अनोखी बात थी.
बरसों पहले अमृता प्रीतम की एक पुरानी इंटरव्यू में उनकी आवाज़ में ये पंक्तियाँ सुनी थी- "कोई भी लड़की, हिंदू हो या मुस्लिम, अपने ठिकाने पहुँच गई तो समझना कि 'पूरो' (एक लड़की का नाम) की आत्मा ठिकाने पहुँच गई."
लेकिन इन पंक्तियाँ का मतलब क्या है तब पूरी तरह समझ में नहीं आया था. फिर एक दिन पिंजर नाम की एक किताब पढ़ने को मिली जो अमृता प्रीतम ने लिखी है और उसी पर पिंजर नाम से बनी हिंदी फ़िल्म देखी.
उपन्यास पिंजर 'पूरो' (उर्मिला मातोंडकर) नाम की एक हिंदू लड़की की कहानी है जो भारत के बंटवारे के वक़्त पंजाब में हुए धार्मिक तनाव और दंगों की चपेट में आ जाती है.
पूरो सगाई के बाद अपने होने वाले पति रामचंद के सपने देखती है. लेकिन उससे पहले ही उसे एक मुस्लिम युवक उठा ले जाता है और निकाह कर लेता है. माँ बनने के अपने एहसास को पूरो अपने तन-मन के साथ हुआ धोखा मानती है. इसी बीच दंगों में भड़की हिंसा के दौरान एक और लड़की अग़वा कर ली जाती है.
लेकिन पूरो अपनी जान जोखिम में डाल उस लड़की को एक और पूरो बनने से बचा लेती है और सही सलामत उस लड़की को उसके पति को सौंपती है जो उसका अपना सगा भाई था.
और तब उसके मन से ये अलफ़ाज़ निकलते हैं- "कोई भी लड़की, हिंदू हो या मुस्लिम, अपने ठिकाने पहुँच गई तो समझना कि पूरो की आत्मा ठिकाने पहुँच गई."
और एक नई समझ के साथ जब आप पूरो के ये शब्द सुनते हैं तो मन में एक सिहरन सी उठती है. जिस तरह उन्होंने औरत के मन और उसकी इच्छाओं, उसके भीतर छुपे खौफ़, उसके साथ हुई ज़्यादतियों और उसके सपनों को अलफ़ाज़ दिए हैं वो उस दौर के लिए अनोखी बात थी.