राजेश बादल
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन अपने बचे खुचे कार्यकाल में अजीबोग़रीब फ़ैसले ले रहे हैं. जाते जाते वे डोनाल्ड ट्रंप की अगली सरकार के लिए मुश्किलों का पहाड़ खड़ा कर रहे हैं। वे जान बूझ कर ऐसा कर रहे हैं।प्रचार अभियान के दौरान और उससे पहले डोनाल्ड ट्रंप और जो बाइडेन के बीच सियासी प्रतिद्वंद्विता अब रंजिश में तब्दील हो गई है।आने वाले दिनों में इसका परिणाम न केवल अमेरिका को ,बल्कि उसके समूचे पिछलग्गू देशों तथा यूरोप के देशों को भुगतना पड़ेगा। अब नाटो देश परेशान हैं। वे समझ नहीं पा रहे हैं कि अब वे अपनी विदेश नीति में आमूल चूल परिवर्तन कैसे करें ? बीते ढाई बरस से तो यह गोरे राष्ट्र यूक्रेन - रूस की जंग में अमेरिका का साथ देते आए हैं। वे अपने सैनिक संसाधनों और हथियारों से यूकेन की सहायता कर रहे हैं। खुलकर रूस के विरोध में हैं।अलबत्ता कुछ देश दबी ज़बान में रूस का समर्थन करते हैं।अब डोनाल्ड ट्रंप की सरकार निश्चित रूप से रूस के पक्ष में खुलकर आएगी तो यूरोप के देशों के सामने धर्मसंकट खड़ा होने वाला है। यक्ष प्रश्न यह है कि ऐसी स्थिति में वे अपनी नीतियों को किस तरह रूस के पक्ष में मोड़ेंगे। ट्रंप तो रूस को सहयोग देने का ऐलान कर ही चुके हैं। पर इतनी आसानी से क्या अन्य देश खुलकर यूक्रेन के विरोध में खड़े हो जाएँगे ? उनके संसाधन और ख़ज़ाना पहले ही यूक्रेन के लिए इतना पैसा बहा चुका है कि उसकी भरपाई आसान नहीं है। इस पृष्ठभूमि में जो बाइडेन की नई घोषणा उनके लिए आफ़त बन गई है।
दरअसल जो बाइडेन ने अपनी विदाई की बेला में निर्णय लिया है कि अमेरिका पहली बार अब लंबी दूरी तक मार करने वाले आर्मी टेक्टिकल तंत्र और उसकी मिसाइलों का उपयोग रूस के ख़िलाफ़ यूक्रेन को करने देगा । यह फ़ैसला लेने से पहले उन्होंने अपने सहयोगियों से कोई विचार विमर्श नहीं किया। इससे अमेरिकी प्रशासन तनाव में है। पेंटागन भी आग़ाह कर चुका है कि लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें अमेरिका के पास कम हैं और उसकी अपनी रक्षा के लिए ही हैं। यदि वे यूक्रेन को दे दी गई तो ठीक नहीं होगा।शायद इसी वजह से अमेरिका अभी तक इस तंत्र के ज़रिए रूसी सीमा के अंदर मिसाइलों का इस्तेमाल करने के विरोध में रहा है। उसे आशंका थी कि इससे रूस और यूक्रेन की जंग विकराल आकार ले सकती है। कई यूरोपीय देश भी इसमें कूद पड़ेंगे। वैसे यूक्रेन एक साल से इन मिसाइलों का उपयोग अपने देश के अंदर घुस आई रूसी सेना के ख़िलाफ़ कर रहा है। इसने रूस को भारी नुक़सान पहुँचाया था। रूस के भीतर इन मिसाइलों से हमले करने की अनुमति नहीं देने के कारण यूक्रेन खुश नहीं था। राष्ट्रपति जेलेंस्की ने कहा था कि रूस के अंदर यदि इन मिसाइलों से आक्रमण करने की उसे अनुमति नहीं मिलती तो यह एक हाथ पीछे बांधकर हमला करने का आदेश देने जैसा है।
जो बाइडेन के इस फ़रमान के सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं। राजनीतिक प्रेक्षकों का एक वर्ग कयास लगा रहा है कि बाइडेन का यह निर्णय रूस और युक्रेन के बीच जंग को दो महीने में समाप्त करा सकता है।इसका मतलब यह भी है कि रूस की पराजय हो सकती है। याने जो बाइडेन अगले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को यह श्रेय नहीं लेने देना चाहेंगे कि वे यह जंग को समाप्त कराएँ.आपको याद होगा कि डोनाल्ड ट्रंप अपने प्रचार अभियान में कह चुके हैं कि वे एक दिन में यह जंग ख़त्म करा देंगे। ट्रंप का आशय यह भी था कि वे यूक्रेन के नीचे से जाजम खींच लेंगे और मजबूर होकर यूक्रेन को रूस के सामने घुटने टेकने पड़ेंगे।डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि अमेरिका यूक्रेन के लिए अपना धन क्यों कर ख़र्च करे ? इसीलिए ट्रंप के एक प्रवक्ता ने बीते दिनों यह कहा था कि यूक्रेन को यह भूल जाना चाहिए कि वह रूस से अपने हारे हुए इलाक़े वापस ले सकता है। इनमें क्रीमिया भी शामिल है।डोनाल्ड ट्रंप के बेटे ने भी सोशल मीडिया पर अपनी पोस्ट में यह कहा था कि बाइडेन सरकार, सेना और रक्षा विभाग मेरे पिता को शान्ति स्थापित करने के प्रयासों में सहायता नहीं करने देना चाहते और इससे तीसरे विश्वयुद्ध की आग भड़क सकती है।डोनाल्ड ट्रंप के बेटे की बात में दम है क्योंकि इस जंग में यूक्रेन नई मिसाइलों से कुर्स्क क्षेत्र के आसपास और भीतर हमला करने में सक्षम हो जाएगा। कुर्स्क रूसी सीमा में है और पिछले तीन महीनों से यूक्रेन ने यहाँ लगभग 1000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर क़ब्ज़ा कर रखा है। यह सीमा उत्तर कोरिया से लगती है और रूस के समर्थन में उत्तर कोरिया ने अपने सैनिकों की तैनाती कर दी है।इस तरह क़रीब क़रीब तीन साल से जारी इस युद्ध में उत्तर कोरिया के उतरते ही वैश्विक समीकरण बदल जाएँगे।यूरोप के देश भी अमेरिका का साथ देने से पहले हिचकिचाएँगे।
बाइडेन के निर्णय ने यूक्रेन को तो प्रसन्न किया है ,पर रूस को भी भड़का दिया है।रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने चेतावनी दी है कि अमेरिका ने यदि ऐसा किया तो उसे परमाणु हथियारों का उपयोग करने पर बाध्य होना पड़ेगा।ग़ुस्साए पुतिन ने यह भी कहा कि वह इसे नाटो देशों का युद्ध में शामिल होने का खुला ऐलान समझेगा। ग़ौर तलब है कि अमेरिका ने जब यूक्रेन को यह मिसाइलें देने का निर्णय किया था तो उससे पहले ब्रिटेन और अमेरिका के बीच एक गोपनीय बैठक हुई थी। इसमें इन मिसाइलों को यूक्रेन को देने पर चर्चा हुई थी। ब्रिटेन आमतौर पर अमेरिका का पिछलग्गू माना जाता है। इसलिए माना जा रहा है कि ब्रिटेन वही करेगा ,जो अमेरिका करेगा। यदि बात बढ़ी तो अंतर्राष्ट्रीय तनाव का एक नया संस्करण हम देख सकते हैं।उधर ,बाइडेन के निर्णय ने यक़ीनन डोनाल्ड ट्रंप की मुश्किल बढ़ाने का काम किया है। ऐसे निर्णय व्यक्ति के नहीं ,बल्कि देश के होते हैं। दो महीने बाद वे सिंहासन सँभालेंगे तो अमेरिका की बाइडेन सरकार के फैसलों को पलटना उनके लिए अत्यंत जटिल होगा। बोलचाल की भाषा में कहें तो जो बाइडेन ट्रंप के लिए रायता फैला कर जा रहे हैं।