राघवेंद्र सिंह
भोपाल।मध्यप्रदेश भाजपा के हालात और केंद्रीय नेतृत्व में महसूस की जा रही लाचारी को बयां करने के लिए एक शेर खास मौजू है -
कल मिला वक्त तो जुल्फें तेरी सुलझा लूंगा,
आज उलझा हूं जरा वक्त के सुलझाने में...
भाजपा में सत्ता- संगठन के उलझे धागों को सुलझाने के लिए केंद्रीय मंत्री और दोबार के प्रदेश अध्यक्ष रहे नरेंद्र सिंह तोमर को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मध्यप्रदेश यात्रा के पूर्व इसकी घोषणा हो सकती है। पूर्व में भी अध्यक्ष रहे तोमर - और सीएम शिवराज सिंह चौहान की जोड़ी ने दो बार 2008 और2013 में पार्टी की सरकार बनाने में अहम भूमिका अदा की थी।
अब 2023 है और यहां की काफी कुछ बदल गया है। इसमें संघ का दखल और दबदबा काफी बढ़ गया है। सबके अपने अपने टेसू हैं जिन पर वे अड़े हुए हैं। तोमर के लिए यही गुत्थी सुलझाना नामुमकिन भले ही न हो मुश्किल जरूर है। भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं को समझना और समझाना आसान है लेकिन गुटों में बंटे संघ के नेताओं को संतुष्ट करना टेढ़ी खीर जरूर है। तोमर के सामने यह काम भी एक बड़ी चुनौती के रूप में होगा। अनुमान है कि इससे वे अपनी संजीदा कार्यशैली के चलते पार पा लेंगे। प्रदेश भाजपा का मर्ज इस कदर ला इलाज होता जा रहा है कि उलझन की गुत्थी हर मिनट कसती जा रही है। इसमें भाजपा से ज्यादा संघ परिवार का पेंच फंस रहा है। संघ परिवार के दिग्गज समस्या की असल वजह बन गए हैं। एक धड़ा संगठन पर काबिज रहना चाहता है। इसलिए अगर संगठन में बदलाव करना है तो सरकार में परिवर्तन करो वरना जो चल रहा वैसे ही चलने दो। सरकार में बदलाव का वक्त निकल गया और संगठन के हालात भी हर दिन बेकाबू हो रहे हैं। विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों की घोषणा के बाद संभावित बगावत को रोकना भी बहुत बड़ा काम होगा।यहीं से जीत के पैमाने तय होंगे।
पार्टी में बिगड़ते हालात का दुष्प्रभाव कार्यकर्ताओं पर पड़ रहा है। उन्हें समझाने के साथ विश्वास जितना सर्वोच्च प्राथमिकता होगी। जीत का रास्ता भी यहीं से होकर गुजरता है। मतदाता का मानस बदल रहा है। भारतीय वोटर की तासीर है कि वह कलह पसंद नही करता। भाजपा की जीत के कारणों में अनुशासन और समर्पण प्रमुख रहा है। जनता भी यही चाहती है। विरोधी भी भाजपा की इस खूबी के कायल रहे हैं। लेकिन अब मामला उलट रहा है।
भाजपा के हालात समझने के लिए हांडी के चावल की भांति कुछ घटनाएं हैं जो पार्टी की नींद उड़ाने के लिए काफी है। विधानसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन करने वाले विंध्य क्षेत्र के भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी ने सार्वजनिक कार्यक्रम में माइक से भाजपा के सांसद गणेश सिंह को राक्षस बताते हुए सुधरने की सलाह दी और कहा कि मैं राजनीति में ऐसे ही राक्षसों को ठीक करने के लिए आया हूं। वह यही नहीं रुकते।वे आगे कहते हैं कि कोई सुधार नहीं हुआ तो उन्हें मैहर में घुसने नहीं दिया जाएगा। ऐसी चेतावनी और धमकी तो कांग्रेस के नेता भी भाजपा के विधायकों मंत्रियों और सांसदों को नहीं देते। यह तेजाबी भाषा सार्वजनिक मंच से इस्तेमाल हो रही है। आपस की बातचीत में वरिष्ठ नेता किस जहर बुझी भाषा का इस्तेमाल करते होंगे इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। भाजपा के गढ़ बुंदेलखंड में पिछले दिनों सागर के नेता सुशील तिवारी को पार्टी ने तत्काल प्रभाव से प्रदेश कार्यसमिति से रुखसत कर दिया। इसके पहले बुंदेलखंड के तीन वरिष्ठ मंत्रियों गोपाल भार्गव ,भूपेंद्र सिंह और गोविंद राजपूत में जबरदस्त विवाद के चलते एक दूसरे के प्रति तल्ख टिप्पणियों का सिलसिला शुरू हुआ था जो मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप के बाद शांत हुआ। इसके चलते इस्तीफे देने तक की बातें पार्टी के साथ मीडिया की सुर्खियां बन रही थी।
विंध्य और बुंदेलखंड के बाद मालवा- निमाड़ के हाल भी चिंताजनक है। इंदौर में युवा मोर्चा और भाजपा के पदाधिकारियों के बीच मतभेद विवादों से आगे बढ़ मारपीट तक पहुंच गया इसके बाद बजरंग दल के कार्यकर्ताओं की भी पुलिस ने जमकर पिटाई कर दी। इस मामले में राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और यह स्थानीय नेताओं ने भी भारी नाराजगी जाहिर की है। एक और जबरदस्त घटना जो भाजपा के इतिहास शायद किसी ने नहीं सुनी होगी। रतलाम जिला भाजपा का मामला है। आलोट के मंडल अध्यक्ष सहित नेताओं को जिलाध्यक्ष ने हटा दिया था और उन्हें इन दिनों जवाब देने के नोटिस जारी किए गए। इससे असंतुष्ट मंडल अध्यक्ष ने सैकड़ों कार्यकर्ता के साथ आलोट से जिला अध्यक्ष को हटाने के लिए रैली निकाली और रतलाम आकर जिला कार्यालय का घेराव किया। इस दौरान लाउडस्पीकर से नारेबाजी हो रही थी और कार्यकर्ता अध्यक्ष के खिलाफ हाथों में तख्तियां लिए जुलूस निकाल रहे थे। उनके समर्थन में विधायक भी थे। बाद में पूर्व मंत्री वरिष्ठ नेता हिम्मत कोठारी को प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन दिया जिसमें जिलाध्यक्ष को हटाने की मांग की गई। पहले असंतोष बंद कमरों में और पार्टी नेताओं से बातचीत में व्यक्त किया जा किया जाता था लेकिन आज इस तरह के असंतोष की लंबी फेहरिस्त है जो इस बात का संकेत देती है कि भाजपा में अनुशासन की चादर खींची जा चुकी है लेकिन पार्टी इस मुद्दे पर औंधे मुंह गिरती दिखाई दे रही है। संवादहीनता इसकी बड़ी वजह है। खास बात यह है कि संवाद और समाधान के बजाए दरवाजा दिखाने का काम होता दिख रहा है। पहले की कुछ घटनाएं मिसाल के तौर पर याद की जा सकती हैं । जिनसे सबक लेने की जरूरत थी। मसलन प्रीतम लोधी को पार्टी से निकालना और फिर वापस लेना वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री जयंत मलैया के पुत्र सिद्धार्थ भैया को भी मुख्यधारा में शामिल करना। इस सबके लिए राष्ट्रीय महासचिव विजयवर्गीय ने श्री मलैया के 75 वे जन्मदिवस पर आयोजित कार्यक्रम में सार्वजनिक रूप से उनसे हाथ जोड़कर पार्टी की तरफ से भी माफी मांगी थी। ऐसे बहुत सारे संगीन किस्से कहानियां हैं जो भाजपा के भीतर कहे और सुने जा रहे हैं।
केंद्रीय नेतृत्व और संघ परिवार ने समन्वय, संजीदगी, सब्र और समझदारी दिखाई तो तोमर-शिवराज की जोड़ी करिश्मा दिखा सकती है। लेकिन इसके लिए दोनों को फ्री हैंड देने की जरूरत होगी। यद्द्पि दोनों नेताओं की खूबी यही है कि वे सबको साथ लेकर चलते हैं। संकेतों से लगता है इस बार टीम में कैलाश विजयवर्गीय और केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल भी जरूरी होंगे। वैसे पार्टी 2018 की जली है सो छाछ भी फूंक फूंक कर पीने की जरूरत है। डैमेज कंट्रोल के लिए इसमें वरिष्ठ नेता विक्रम वर्मा, पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा, अनूप मिश्रा, केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते,विजेंद्र सिंह सिसोदिया, हिम्मत कोठारी,अजय विश्नोई, जैसे नेताओं की भी खासी भूमिका रहेगी। बग़ावत रोकने के लिए असरदार नेताओं की टीम खोजनी पड़ेगी। इनमें कुछ बगावत करने वाले हैं तो कुछ उसे रोकने वाले भी हैं।
भाजपा के ताजा हालात पर शायर मुज्जमिल हुसैन का एक शेर फिट बैठता है-
गैर मुमकिन है कि हालात की गुत्थी सुलझे।
अहल-ए दानिश ने बड़े सोच कर उलझाई है।