आर के पालीवाल
बेतवा के उदगम स्थल से शुरु हुई हमारी यात्रा के तमाम पड़ावों में हमें बेतवा और उसकी सहायक नदियों की दुर्दशा की अंतहीन सी स्थिति दिखाई दे रही थी। तरह तरह के प्रदूषण और शोषण का शिकार हुई बेतवा के लिए मन दुखी हो रहा था। हम रास्ते के लोगों से बेतवा के लिए कुछ करने की अपील करते चल रहे थे। हमें कहीं दबे स्वर में कहीं मुखरता के साथ आश्वासन भी मिल रहे थे लेकिन बेतवा के लिए उम्मीद की किरण बहुत क्षीण दिखाई देती थी। इस यात्रा का सबसे सुखद पड़ाव गंज बासौदा रहा।
गंज बासोदा में शशि यादव नगर पालिका अध्यक्ष हैं। उनके पति स्व. अनिल यादव प्रतिष्ठित प्रकृति प्रेमी पत्रकार एवम समाजसेवी थे। इस दंपत्ति ने कुछ मित्रों के साथ मिलकर 2003 में बेतवा नदी की पदयात्रा की थी। गंज बासौदा के कुछ सजग युवाओं ने अपने अग्रजों की प्रकृति प्रेम की विरासत को संजोने और उसे आगे बढ़ाने का सुंदर काम किया है। उनके श्रमदान के कारण गंज बासौदा में बेतवा नदी के घाटों की स्थिति दर्शनीय है। अनिल यादव द्वारा जलाई गई रचनात्मक कार्यों की मशाल आगे ले जाने के लिए अनिल यादव फाउंडेशन समय समय पर गंज बासौदा में समाजसेवी आयोजन करती रहती है। इसी कड़ी में बेतवा यात्रा के सहयात्रियों के स्वागत और स्व. अनिल यादव को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए बेतवा तट पर एक भव्य समारोह आयोजित किया गया था। इस आयोजन में नगर पालिका अध्यक्ष, बेतवा घाटों का श्रमदानी समूह और नगर के प्रतिष्ठित प्रबुद्ध जन उपस्थित थे।
डॉ सुरेश गर्ग ने स्व. अनिल यादव को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि उन्होंने अपनी सहधर्मिणी और कुछ साथियों के साथ 2003 में उस दौर में बेतवा की पदयात्रा की थी जब बेतवा में तरह तरह के प्रदूषण की शुरुवात ही हुई थी। उनकी यात्रा को तत्कालीन दौर में प्रशस्ति तो खूब मिली थी लेकिन जनता और सरकार ने बेतवा को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए जरूरी कदम नहीं उठाए इसीलिए जगह जगह बेतवा बेहद प्रदूषित हो गई। यह शुभ संकेत है कि नगर पालिका और युवा स्वयं सेवियों के कारण गंज बासौदा के घाटों पर बेतवा साफ दिखाई दे रही है। मेरे लिए भी गंज बासौदा में बेतवा के साफ घाट और तुलनात्मक रूप में साफ बहता पानी देखना आश्चर्यजनक था। अपने उदबोधन में मैंने कहा कि उदगम स्थल झिरी के बाद हमारा यहीं बेतवा का आचमन करने का मन बना है क्योंकि यहां के सजग नागरिकों ने अपनी नदी की साफ सफाई के लिए पूरी श्रद्धा और जीवट से काम किया है।
गंज बासौदा के प्रबुद्ध जनों ने हम सभी सहयात्रियों का सम्मान किया था। गंज बासौदा के युवा श्रमदानी भी हम लोगों का सम्मान करना चाहते थे लेकिन हम सबने कहा कि हम तो केवल अध्ययन एवम जन जागरण यात्रा कर रहे हैं लेकिन श्रमदानी बेतवा को साफ रखने के लिए नियमित श्रमदान करते हैं इसलिए उन्हें सम्मानित किया जाना चाहिए। गंज बासौदा के युवा श्रमदानियों का रचनात्मक कार्य है ही ऐसा जिसमें नदी के प्रति सच्ची श्रद्धा और प्रकृति एवम पर्यावरण के प्रति अनुराग कूट कूट कर भरा है। इस समूह की एक खासियत यह भी है कि इसमें पंद्रह वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक के सदस्य हैं। कुछ विद्यार्थी हैं, कुछ सरकारी कर्मचारी और कुछ व्यवसायी हैं। सब अपने व्यस्त समय से समय निकाल कर श्रमदान करते हैं। आजकल प्रकृति और पर्यावरण के बारे में चिंता तो लाखों लोग करते हैं और जल दिवस, नदी उत्सव और पर्यावरण दिवस पर बड़े बड़े समारोह भी आयोजित करते हैं जिनमें भारी भरकम भाषणों में जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग को लेकर बड़े बड़े आंकड़े प्रस्तुत किए जाते हैं लेकिन जमीन पर कोई काम नहीं होता।
गांधी कहते थे कि यदि हम सब अपना काम खुद करने लगें तो हमें सरकार और अन्य लोगों की सहायता की नहीं के बराबर जरूरत होगी। दुर्भाग्य से आम जनता जन सहभागिता के रचनात्मक कार्यों से विमुख होती जा रही है और हर चीज के लिए सरकार का मुंह ताकती है। ऐसे माहौल में गंज बासौदा ने आत्म निर्भर समाज का अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। यदि नदियों के किनारे बसे गांवों, कस्बों और शहरों के कुछ सजग युवा गंज बासौदा के युवा श्रमदानियों की तरह अपनी नदी, प्रकृति एवम पर्यावरण के लिए कमर कस लें तो हमारी नदियां प्रदूषित नहीं होंगी और उनका वर्तमान प्रदूषण स्तर भी काफ़ी कम हो सकता है। नदियों और प्रकृति एवम पर्यावरण को बचाने का यही सहज सरल और सबसे आसान मार्ग है। आशा की जानी चाहिए कि गंज बासौदा मॉडल दूर दूर तक पहुंचेगा। हम सब को इसके प्रचार प्रसार के लिए हर संभव योगदान करना चाहिए।