राजेश बादल
अत्यंत ख़तरनाक़ सन्देश है।फ्रांस में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर हुए सम्मेलन में कहा गया कि इससे किसी की नौकरी नहीं जाएगी,बल्कि उससे अनगिनत रोज़गारों का झरना फूट पड़ेगा। दूसरी तरफ उसी दिन ख़बर छपी है कि फेसबुक की मालकिन कंपनी मेटा एक सप्ताह के भीतर चार हज़ार लोगों को नौकरी से निकाल देगी। कंपनी में लगभग अस्सी हज़ार कर्मचारी हैं। यानी क़रीब पाँच प्रतिशत लोग बेरोज़गार हो जाएँगे।पिछले बरस ही मेटा ने इक्कीस हज़ार पेशेवरों की सेवाएँ समाप्त कर दी थीं। एक साल में पच्चीस हज़ार कर्मचारियों की बर्ख़ास्तगी कोई छोटा मोटा आँकड़ा नहीं है।हज़ारों चूल्हे बुझे और मेटा के स्वामी के घर दिए जले। पिछले साल ही कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मार्क ज़करबर्ग को डिविडेंड के रूप में कोई सत्तर करोड़ डॉलर अर्थात पाँच हज़ार सात सौ अट्ठानवे ( 5798 ) करोड़ रूपए मिले।हर तीन महीने में उन्हें 17.5 करोड़ रूपए मिले।इसमें टैक्स भी शामिल था।
यह संसार के सिर्फ़ एक उपक्रम की जानकारी है। ज़रा सोचिए ! अकेले अमेरिका की आबादी साढ़े तैंतीस करोड़ (33 .50 ) है।वहाँ इस क्षेत्र में लगभग पचास बड़ी कम्पनियाँ हैं। एक अनुमान के मुताबिक़ बीते एक दशक में पांच लाख से अधिक लोग नौकरी से निकाले गए हैं। उनके स्थान पर उतनी ही संख्या में लोग नहीं नियुक्त किए गए। इन कंपनियों ने अपना काम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या अन्य कम्प्युटर संचालित तंत्र से आसान कर लिया है। आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि समूचे संसार में क़रीब 450 करोड़ लोग सोशल मीडिया और अन्य आधुनिक डिज़िटल अवतारों के साथ जुड़े हैं।मोटा आकलन यह है कि वैश्विक स्तर पर दस हज़ार से अधिक कम्पनियाँ इन अवतारों को संचालित कर रही हैं।इसका कोई पक्का आँकड़ा उपलब्ध नहीं है।मगर,यह स्पष्ट है कि बीते दशक में कम से कम पाँच करोड़ लोग अपनी नौकरी से निकाले गए हैं।ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसे फ़र्ज़ी दावों का आधार क्या है,जो यह कहते हैं कि यह नया मीडिया रोज़गार छीनने के लिए नहीं ,बल्कि रोज़गार देने के लिए है।क्या यह अमीर को और अमीर बनाने तथा ग़रीब को और ग़रीब बनाने की साज़िश नहीं है ?
अमेरिका के जाने माने उद्योगपति मार्क एंडरसन तो कहते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सारी समस्याओं का समाधान है।वे इस विषय के जानकार भी माने जाते हैं।जून 2023 में प्रकाशित लेख में वे कहते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस दुनिया को नष्ट नहीं करेगा।एक और जानकार रे कुर्जवील भी ऐसा ही मानते हैं।मगर,मेरी चिंता तो 2023 में ही चीन,अमेरिका और तीस अन्य देशों की ओर से स्वीकार किया गया ब्लेचली घोषणापत्र है।यह घोषणा पत्र कहता है कि एआई मनुष्य को मनुष्य के ख़िलाफ़ बाँट देगा और प्रतिद्वंद्वी देशों को विनाशकारी टकराव बिंदु तक ले जाएगा।याने रोज़गार के मसले पर लोग एक दूसरे के ख़िलाफ़ खड़े हो जाएँगे।घोषणापत्र कहता है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तमाम मुल्क़ों को टकराव के बिंदु तक ले जाएगा।यह अब तक के सर्वाधिक विनाशकारी हथियार पैदा करेगी।इसकी मामूली सी चिंगारी समूचे विश्व में प्रलयंकारी आग भड़का सकती है।
चिंता का एक कारण चैटजीपीटी का ग़ैर ज़िम्मेदाराना बरताव भी है।वह डिज़िटल मंचों पर उपलब्ध कॉपीराइट कंटेंट आँख मूंदकर इस्तेमाल कर रहा है। इसलिए भारत के कई ख़बरिया संस्थानों ने उसके ख़िलाफ़ न्यायालय की शरण ली है।संवाद समिति ए एन आई के अलावा इंडियन एक्सप्रेस,इंडिया टुडे ,द हिंदू और एनडीटीवी जैसे समाचार संस्थान अदालत जा रहे हैं। चैटजीपीटी बनाने वाली ओपन एआई नामक संस्था है।वह कहती है कि एक बार आपने सार्वजनिक माध्यम पर अपनी संपादकीय सामग्री डाल दी तो तो फिर उसके कॉपीराइट होने का प्रश्न ही नहीं उठता।यह बेतुका तर्क है।यदि कोई यू ट्यूब पर अपना कॉपीराइट कंटेंट अपलोड करता है और उससे आमदनी करता है तो उसकी सूचना या जानकारी का उपयोग कोई अन्य कैसे कर सकता है ? क्योंकि इससे कंटेंट के वास्तविक मालिक को तो नुकसान ही होगा। चैटजीपीटी उस कंटेंट से पैसे कमाएगा ,जो उसने चुराया हुआ है। इस पर अदालत अभी विचार कर रही है। कुल मिलाकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और और उसके अन्य अवतार आज़ाद पत्रकारिता के लिए ख़तरनाक़ हैं मिस्टर मीडिया !