भोपाल । भारत में गांधीवादी संस्थाओं के खिलाफ़ अघोषित मुहिम चलाई जा रही है । यह गांधी विचार और दर्शन को आगे बढ़ाने से रोकती है ,ताकि नई पीढ़ी गांधी जी के योगदान को नही जान सके । बताने की आवश्यकता नहीं कि इसके पीछे कौन है । पहले साबरमती आश्रम ,फिर बनारस में सर्व सेवा संघ के कार्यालय पर कब्ज़ा, गांधी पीस फाउंडेशन को परेशान किया जाना, सेवाग्राम में अशांति पैदा करने के षड्यंत्र और उसके बाद उत्तर भारत में गांधी दर्शन के एक बड़े केंद्र भोपाल के गांधी भवन को जबरन विवादों में घसीटे जाने से गांधी विचार के समर्थक क्षुब्ध हैं । बीते दिनों एक संगठन को केंद्र सरकार ने मणिपुर में तथाकथित शांति की कोशिशों के लिए मणिपुर जाने की अनुमति दी । इसके मुखिया की राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के राम माधव से गोपनीय मुलाकातें रहस्यमय हैं । इसी संगठन के एक सदस्य मणिपुर जाने वाले प्रतिनिधिमंडल के सदस्य थे । यही सदस्य गांधी भवन न्यास के भी सदस्य हैं और गांधी भवन न्यास का अध्यक्ष बनना चाहते हैं । अध्यक्ष चुनाव से पहले वे गांधी भवन के सचिव और विख्यात सर्वोदयी , भूदान आंदोलन में वर्षों तक विनोबा भावे के सहयोगी रहे बुजुर्ग गांधीवादी दया राम नामदेव को धमका चुके हैं । उनके अलावा एक और न्यासी ने
गाँधी भवन के बारे में कुछ समय से दुर्भावनापूर्ण अभियान छेड़ा हुआ है।बीते दिनों 26 जुलाई को हुई बैठक में दस न्यासी उपस्थित थे। इनमें से सिर्फ़ दो सदस्य राकेश दीवान और रणसिंह परमार शेष आठ सदस्यों से असहमत थे। इसका वास्तविक कारण यह है कि ये दोनों ट्रस्ट में अध्यक्ष और सचिव पद पर क़ाबिज़ होना चाहते थे। रणसिंह परमार तो अध्यक्ष के चुनाव से पहले वर्तमान सचिव वयोवृद्ध सर्वोदयी गाँधीवादी दयाराम नामदेव को ही धमका चुके थे। उन्होंने श्री नामदेव से कहा था कि यदि उन्हें अध्यक्ष नहीं बनाया गया तो वे देख लेंगे। रणसिंह एकता परिषद् से जुड़े हुए हैं। जिसका कार्यालय गांधी भवन परिसर में हैं, और इस संस्था के कुछ साथी गांधी भवन में ही किराये से रहते हैं, जो गाँधी भवन के डिफॉल्टर हैं। रणसिंह परमार अपने पसंद के सदस्यों को न्यास मंडल में भी शामिल करना चाहते थे ,लेकिन ऐसा नहीं होने पर उन्होंने समूचे ट्रस्ट के विरोध में अभियान छेड़ दिया है।
न्यास के एक अन्य सदस्य राकेश दीवान भी न्यास के सचिव पद पर आने के लिए लंबे समय से प्रयासरत हैं।वे भी श्री नामदेव को जेल जाने की धमकी दे चुके हैं। जब उन्होंने देखा कि न्यास के अन्य सदस्यों ने लगभग पैंसठ साल से विनोबा भावे के भूदान और सर्वोदय कार्यक्रमों में साथ रहे, गांधीवादी दयाराम नामदेव को एक बार फिर चुन लिया है तो वे बौखलाहट में गांधी भवन और गांधी दर्शन के विरोध में उतर आए और दुष्प्रचार कर रहे हैं।
इन दो न्यासियों ने हाल ही में हुई न्यास की बैठक के बाद प्रेस विज्ञप्ति जारी की है। इसमें कहा गया है कि श्री नामदेव ने अपना कार्यकाल बिना न्यास की सहमति के बढ़ा लिया है। यह आरोप हास्यास्पद है क्योंकि कार्यकाल बढ़ाने के बारे में न्यास की सहमति रही है। श्री दीवान और श्री परमार ने पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर न्यास और सचिव पर अनियमितताओं के बेबुनियाद आरोप लगाए हैं। इन आरोपों की जांच संबंधित एजेंसियां कर रही हैं। इसलिए न्यास अपनी ओर से इस मामले में कुछ नहीं कहना चाहता। जांच पूरी होने के बाद दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। गांधी भवन न्यास का इन सभी जांच एजेंसियों पर पूरा भरोसा है।
न्यास की बैठक में बदबू फैलाने जैसी मानसिकता पर आधारित कोई बात नहीं कही गई। बल्कि हकीकत तो यह है कि न्यास मंडल की सदस्य डॉक्टर वंदना शिवा के साथ उन्होंने दुर्व्यवहार किया। एक बुजुर्ग महिला के साथ अपमानजनक व्यवहार के लिए उन्हें डॉक्टर शिवा से माफ़ी मांगनी चाहिए थी। बताने की आवश्यकता नहीं कि डॉक्टर शिवा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जैविक खेती और पर्यावरण संरक्षण के लिए जानी जाती हैं। वे गांधीवादी हैं। गांधीभवन न्यास उन्हें अपने सदस्य के रूप में पाकर गर्व महसूस करता है। श्री दीवान उन्हें देखकर भड़क गए और अध्यक्ष से पूछने लगे कि डॉक्टर शिवा को इस बैठक में क्यों बुलाया गया है। इस पर अध्यक्ष ने उन्हें बताया कि वंदना शिवा भी न्यास की सदस्या हैं तब वे चुप हुए ।
न्यास के आठ सदस्यों ने श्री नामदेव का कार्यकाल बढ़ाने का समर्थन किया था। इसी आधार पर अध्यक्ष संजय सिंह ने कार्यकाल विस्तार का निर्णय लिया। इसके लिए श्री संजय सिंह सक्षम प्राधिकारी हैं। जहाँ तक न्यास के सदस्यों का कार्यकाल बढ़ाने की बात है तो यह एक परंपरा ही है, विधान नहीं। गाँधी विचार के प्रति समर्पित और निष्ठावान सदस्य कार्यकाल में विस्तार पाते रहे हैं। नहीं बढ़ाने पर किसी तरह का एतराज़ न तो उचित है और न जायज़।
न्यास अपनी ओर से गांधीवादी विचारों के विस्तार का काम कर रहा है। पिछले छह महीने में क़रीब क़रीब प्रत्येक सप्ताह एक कार्यक्रम किया गया है, जो देश भर की गांधीवादी संस्थाओं के काम को देखते हुए एक रिकॉर्ड है। भारत में भोपाल के गांधी भवन की विशिष्ट छवि है। अफ़सोस है कि अपने निजी स्वार्थों के चलते दो लोग संस्था तथा गांधी दर्शन को चोट पहुंचा रहे हैं।